बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध - भाग 2 युद्ध - भाग 2नरेन्द्र कोहली
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रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
तीन
विभीषण ने सभागार में प्रवेश करते ही अनुभव किया कि आज सभा का विशेष रूप से आयोजन किया गया था। रावण की राजसभा वैसे भी जनसंकुल थी। सभा के आयोजन की सूचना पाकर कोई भी अनुपस्थित रहने का साहस नहीं कर सकता था; फिर भी कुछ लोग थे, जो नियम के अपवाद थे। किंतु आज वे भी उपस्थित थे। सभा में बहुत कम दिखाई पड़ने वाला कुंभकर्ण भी आज उपस्थित था। विभीषण समझ नहीं पाए कि इसे मात्र संयोग माना जाए कि आज कुंभकर्ण मदिरा में धुत्त, संज्ञाशून्य नहीं था, इसलिए सभा में चला आया था, अथवा आज उसे विशेष रूप से सभा में उपस्थित किए जाने की व्यवस्था की गई थी। किंतु कुंभकर्ण को विशेष रूप से उपस्थित रखने का आयोजन करने का क्या कारण हो सकता है। रावण का ऐसा कौन-सा हित है, जो कुंभकर्ण की उपस्थिति से ही सध सकता है?...या रावण ने कुंभकर्ण को इसलिए
बुलाया है कि वह विभीषण की काट कर सके। एक भाई रावण का विरोध करे तो दूसरा भाई समर्थन कर उस विरोध की तीव्रता को नष्ट कर दे...। या फिर आज रावण को सभा में अपना पूर्ण समर्थन चाहिए। वैसे रावण की भृकुटी को देखते ही सभा में उसका समर्थन-ही-समर्थन होने लगता है। फिर भी कुंभकर्ण के समर्थन का अपना ही महत्त्व है...और विभीषण भली प्रकार जानते हैं कि कुछ भी हो जाए, कुंभकर्ण, रावण का समर्थन ही करेगा।
रावण ने सभा में प्रवेश किया तो सभा अनुशासित हो गई। किंतु, विभीषण ने देखा कि रावण आज प्रातः के समान शांत नहीं था। उसकी व्याकुलता उसके मुख पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी। प्रातः की भेंट और इस समय के बीच में ऐसा क्या हो गया था? क्या राम के अभियान के विषय में कोई नई सूचना मिली है, या सीता सम्बन्धी कोई समाचार मिला है अथवा लंका के भीतर से ही कोई ऐसा विरोध उठ खड़ा हुआ है, जिससे रावण चिंतित है...
सिंहासन पर बैठकर रावण ने एक दृष्टि सम्पूर्ण सभा पर डाली और प्रहस्त पर आकर उसकी दृष्टि रुक गई, "व्यवस्था हो गई सेनापति?"
"हां राजन।" सेनापति प्रहस्त ने कुछ अतिरिक्त शालीन, औपचारिकता से उत्तर दिया, "मैंने तत्काल व्यवस्था कर दी थी। इस समय लंका के सभी द्वारों पर अस्त्र-विद्या में पारंगत रथियों तथा अश्वारोहियों से संरक्षित हमारी सेनाओं के सशस्त्र गुल्म नियुक्त कर दिए गए हैं। सभी प्रमुख मार्गों पर वाहिनियां परिक्रमा कर रही हैं। प्रजा में गुप्तचर लोग अपना काम कर रहे हैं और स्कंधावारों में सेनाएं युद्धार्थ सन्नद्ध होने के आदेशाधीन हैं।" प्रहस्त ने क्षण भर रुककर विषय बदला, "बाहर से कोई सेना लंका में प्रवेश नहीं कर सकती। राम की सेना के भय से भागकर आए हुए शरणार्थियों को लंका में घुसकर त्रास फैलाने नहीं दिया जाएगा। लंका के भीतर प्रजा को विद्रोह नहीं करने दिया जाएगा। और राजन! लंका के निर्धन लोगों में सैनिकों और सम्पन्न घरों से सैनिक अधिकारियों की भर्ती आरंभ कर दी गई है।
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